एक पेड़ था |



एक पेड़ था |

एक बार कि बात है एक हरे भरे वृक्ष के तने ने दूर जल रही अग्नि को बुझने से पहले तड़पते देखा उसे उसकी हालत देख बहुत तरस आया और उसने जड़ से सलाह माशवरा किए बिना ही अग्नि को अपने मोखले में स्थान से दिया अब क्या था तना खुश था की उसने किसी का भला किया फल अभी उगे ही नहीं थे और जड़ अभी अग्नि की मौजूदगी से अनजान थी  ऐसे की रहते रहते दिन निकलते जा रहे थे आग की भूख बढ़ रही थी और तना टहनी दर टहनी आग के हवाले राहा था जो की आग को किसी जीवित रहने में सहायक तो थी मगर अग्नि के लिए काम थी, उस आग की गर्मी से तना अंदर से सूख रहा था मगर अपनी गलती न मान रहा था न जान रहा था बस बाहरी खोखल उसका तना खड़ा था जड़ भी गर्मी से झुलसती जा रही थी उसने समझने की कोशिश भी की तने को की ये आग हम सबको खा जायगी मगर फिर भी भूखी रहेगी खुद को जला कर कब तक उसको ज़िंदा रखोगे तुम राख हो जाओगे अपने फल गवा बैठोगे फिर भी अग्नि को काम ही लगोगे जड़ की बातें सुन तना बौखलाया उसने जड़ को मत्लबी बतलाया बोलै कोण सा हम सूख रहे पूरा बेचारी आग को ज़िंदा रखने में थोड़ा सा अपना जाता है तो क्यों तुम मुझसे लड़ने आ जाती हो तुम अपना खाना बनाओ में अग्नि को सम्हालता हूँ तुम्हारी बातें सुन हमारे फल भी तुम्हारी ही भाषा बोलेंगे ये नहीं की बच्चों को दूसरों के लिए जीना सिखाओ हम पेड़ हैं इंसान नहीं दूसरो को देने वाला सबक दे जाओ मरना तो एक दिन सभी को है तो क्यों न किसी का कुछ अच्छा कर के मारें वो जीना भी क्या जीना जो केवल खुद के लिए जिए या सुन जड़ ने चुप्पी साधी झुलसती रही आग से सूखती रही मगर फिर कभी उसने तने से अपनी तकलीफ न बांटी| समय बीतता गया आग बढ़ती रही कुछ फल पेड़ से गिर पास में पौधे बन गए कुछ जिनको ले गए पशु पक्षी इंसान वो कहीं दूर जम गए एक फूल था बचा बस एक ही रह गया जिससे  खाने के साथ जड़ ने अपना दर्द भी कह दिया फूल ने तने को बोलै समझाया मगर तना उसकी भी एक न सुनी फूल ने कहा जड़ सूख जायगी हम्सब्का करती है मगर आग का और नहीं कर पाएगी ये सुन तना फूल पे चिल्लाया और फूल को कही और जम जाने का मार्ग दिखलाया तो फूल से जड़ की तकलीफ सेहन न हुई तो उसने अपना दिमाग लगाया और उसने अग्नि को अपनी गर्मी कम करने का उपाए बताया, अग्नि भी शातिर थी उसने पहले तो फल को अपना असली रंग दिखाया फिर अपना बेचारा चेहरा फिर से तने को दिखाया अब तने को फूल पर बोहोत गुस्सा आया तने ने फूल को वृक्ष न बन पाने पर नाकाबिल बताया ये सब सुन जड़ बोहोत उदास थी वो खाने के साथ फूल को बस अपनी तकलीफ कहती थी फूल ने बोहोत जड़ समझाया बोलै तुम तने से क्यों नहीं ये सब कहती क्यों चुपचाप रहती हो सबकुछ सेहती तुम सूख जाओगी तो ये पेड़ नष्ट हो जाना है तने को तो सूख कर भी अग्नि को जलना है मेरा सोचो मेरा क्या होगा मई तो फूल हु मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूँगा जड़ बोली हरी इच्छा तुम भी फल बन डाली से गिर जाओ खुद एक वृक्ष बनो अपनी नयी दुनिया बसाओ मगर फूल तो फूल होता है उसके जीवन का मकसद तो फल से हटके होता है फूल ने कहा में ऐसे ही खुश ही अपने रंग, महक और खिलखिलाहट से दिन रात खुशियां बिखेर कर सूख कर फल तो सबने ही बन न है क्या ज़रुर है इस पेड़ के हर फूल को अंत में वृक्ष ही बन न है मइ मुरझाना ही नहीं चाहा में फूल बन के खुश हूँ जड़ बोली ठीक है जैसा तुम चाहो और फिर एक दिन जड़ पूरी सूख गयी tane को अभी नहीं समझ नहीं है उसकी शक्ति उस से रूठ गयी अब तने में जितनी ताकत है वो आग और फूल के हवाले करना चाहता है चाहता है फूल को जल्दी से फल बनाना मगर ये नहीं जनता फूल क्या चाहता है फूल जड़ को तो है खो चूका आज फूल तने के लिए लड़ रहा है तना आज भी अपनी गलती मानना नहीं चाहता है आज भी वो खुद को आग में झोंक देना चाहता है आज भी आग के लिए तने का किया कम है ये बात आग तने को हर पल याद दिलाती है अब तना टूट रहा है हवायें उसका संदेस नन्हे पेड़ों तक पहुंचती है अब तने को जड़ की बात याद आती है मगर आज भी अपनी गलती समझ नहीं आती अब अपनी बस बेचारगी नज़र अति है उसको लगता है उसने सबके लिए इतना कुछ किया खुद को सूखा भी दिया मगर फिर भी में क्यों नहीं पूरा है उसके दिए बलिदान के बाद भी क्यों फूल के लिए वो अधूरा है उसको तो इस बात की भनक न थी वो फूल जो था वो नकली था फूल तो जड़ के साथ ही ख़तम हो चूका था अब जो रह गया वो बस दिखावे का था और अग्नि ने उसके हर बलिदान को गलत और कम ही बताया है जब अग्नि को ज़िंदा रखने को दी टहनी अपनी छोटी तो बोली काम पद गयी और लाओ और अगर दी टहनी सबसे मोटी तो बोली इतनी मोटी क्यों दी लपटें तेज़ हो गई तुमसे एक काम ठीक से होता नहीं है कैसे चलोगे तुम मेरे बिना तुमको तो कुछ पता ही नहीं है| आज भी अग्नि खुदके लिए ही जीती है आज इस पेड़ को खा लिए देखना ये है इस तने के बाद ये अग्नि किस पेड़ से शरण लेती है|

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